श्री अग्रसेन चालीसा
महालक्ष्मी को नमन कर, स्मरण करूं गणेश ।
फिर चरण रज सिर धरहुं, ब्रह्मा, विष्णु महेश ।।
ओ! अग्रवंश के जनक, अग्रसेन भगवान ।
दो आशीष तपस्वी मुझे, सिद्ध करो सब काज ।।
जय जय जय श्री अग्रसेन जी ।
जय अग्रवाल अग्रोहा नैन जी ।।
वल्लभ सुपुत्र वग्र, अग्रनाथा ।
अग्रसेन विचित्र तुमरी गाथा ।।
प्रताप नगर के महाराजा ।
तुमरो यश सिद्ध करे काजा ।।
श्याम-वरण, महा बलशाली ।
कमल-नयन मुखाकृति निराली ।।
दिव्य तेज-पुंज क्षत्रिय रूपा।
दाड़ी-मूंछा सघन सरूपा ।।
सिर पर मुकुट गले में माला ।
भाल पर तिलक वीर विशाला ।।
बलिष्ठ हाथ में असी धारी ।
निडर, निर्भीक मनुज अवतारी ।।
तुम लोग नायक कर्मयोगी ।
समाजवादी रमते जोगी ।।
पहले-पहले माधवी ब्याहे ।
नाग कुमुद की कन्या लाए ।।
नाग, आर्य संस्कृति मिली है ।
अग्रवंश की बेल खिली है ।।
फिर महिरथ की सुंदरावती ।
स्वयंवर में पाए महासती ।।
महिरथ से बढ़ी शक्ति भारी ।
प्रणत पाल, राज्य विस्तारी ।।
वंशज हित बहु ब्याह रचाए ।
सुंदर सोलह रानी ।।
तीन पुत्र एक कन्या हरषे ।
वंश बढ़ा अग्रबंधु हरषे ।।
आरती लक्ष्मी माता की
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता....
उमा ,रमा,ब्रम्हाणी, तुम जग की माता ।
सूर्य चंद्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता।।
ॐ जय लक्ष्मी माता....
दुर्गारुप निरंजनी, सुख संपत्ति दाता ।
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धी धन पाता ।।
ॐ जय लक्ष्मी माता....
तुम ही पाताल निवासिनी, तुम ही शुभदाता ।
कर्मप्रभाव प्रकाशिनी, भवनिधि की त्राता ।।
ॐ जय लक्ष्मी माता....
जिस घर तुम रहती, ताँहि में सद्गुण आता ।
सब संभव हो जाता, मन नहीं घबराता ।।
ॐ जय लक्ष्मी माता....
तुम बिन यज्ञ न होता, वस्त्र न कोई पाता ।
खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ।।
ॐ जय लक्ष्मी माता....
शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरोदधि जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन ,कोई नहीं पाता ।।
ॐ जय लक्ष्मी माता....
महालक्ष्मी जी की आरती ,जो कोई नर गाता ।
उर आनंद समाता,पाप उतर जाता ।।
ॐ जय लक्ष्मी माता....
ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ।।
ॐ जय लक्ष्मी माता...
आरती भगवान अग्रसेन की
जय अग्रसेन हरे, स्वामी जय अग्रसेन हरे ।
कोटि कोटि नत मस्तक, सादर नमन करें। ओम जय श्री अग्रसेन हरे....
अश्विन शुक्ल एकम नृप वल्लभ जाए. स्वामी वल्लभ घर जाए।
अग्रवंश संस्थापक, नागवंश ब्याहे। ओम जय श्री अग्रसेन हरे....
केशरिया ध्वज फहरे छत्र चंवरधारी। स्वामी छत्र चंवरधारी।
झांझ, नफीरी, नौबत, बाजत तब द्वारे। ओम जय श्री अग्रसेन हरे....
अग्रोहा रजधानी, इंद्र शरण आए। स्वामी इंद्र शरण आए।
गोत्र अठारह, अब तक तेरे गुण गाएं। ओम जय श्री अग्रसेन हरे....
सत्य, अहिंसा, पालक, न्याय नीति समता। प्रभु न्याय नीति समता।
र्इंट रुपया की रीति, प्रकट करे ममता। ओम जय श्री अग्रसेन हरे....
ब्रह्मा विष्णु शंकर, वन सिंहनी दीन्हा। स्वामी वन सिंहनी दीन्हा ।
कुलदेवी महामाया वैश्य कर्म कीन्हा। ओम जय श्री अग्रसेन हरे....
अग्रसेन जी की आरती जो कोई नर गावे। कहत त्रिलोक विनय से, इच्छित फल पावे।।
झंडा गान
झंडा लहर लहर लहराए,
अग्रवंश की कीर्ति सुनाए।
केसरिया रंग बहुत सुहाए,
त्याग भाव का पाठ पढ़ाए।
सहानुभूति व प्रेम-त्याग को,
हम सब जीवन में अपनाएं।।
अट्ठारह किरणों का गोला,
राज्य व्यवस्था को बतला कर,
अग्रसेन की याद दिलाए ।।
एक रुपए संग र्इंट जड़ी है,
इसमें समता बहुत बड़ी है,
अग्रोहा की याद दिलाए ।।
ऊपर नीचे वूâल बने हैं,
मिले बीच अनुवूâल घने हैं,
ऊंच-नीच का भेद मिटा कर,
समता हम जीवन में लाएं ।।
रचयिता- डॉ. विष्णुचंद्र गुप्ता